मेरी बात सुनो भैया मैं एक कलाकार हूं. कहते कहते बात बात कलाकार "मैं" ही तो हूँ! व्यापारी हो, कलाकार हो पहले ये भी तह करलो. सामान बेचने आये हो तो बेचो और चलते बनो. क्या चिल्ला चिल्ला कर कला के उप्पर नाच रहे हो. ऐंठ रहे हो ऐसे जैसे ग़ालिब के अब्बाजान तुम्ही हो. नागार्जुन सा जी पाओगे? मीरा सा खो पाओगे तुम? तुलसी, कबीर के शब्दों तक कभी भी खुद को पाओगे तुम? मिल लो इनसे पहले तो ये मोह ख़त्म हो जाएगा. कलाकार का भारी तमका कंधों से हट जाएगा. फिर शायद इस "मैं" से पहले तुम "हम" को जी पाओगे. दिखने वाली दौड़ से पहले देख तुम खुद को पाओगे. कला संग तट पर बैठो तो सच की गंगा बहती है. कहो नही कुछ,सुन लो लहरें कण-कण में कला ही बसती है... ऐंठ रहे हो ऐसे जैसे, ग़ालिब के अब्बाजान हो.....