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धुंए का गुबार अब और नहीं क़त्लखाने का समान अब और न

धुंए का गुबार अब और नहीं
क़त्लखाने का समान अब और नहीं, 
न जाने क्यूं चंद लोग रंज रख कर
मार देते हैं मासूमों को, 
नफरतों का बाजार अब और नहीं।

©Senty Poet #Agarwal #Priya #Khan #SINGH #Srivastava #Jain 

#26/11
धुंए का गुबार अब और नहीं
क़त्लखाने का समान अब और नहीं, 
न जाने क्यूं चंद लोग रंज रख कर
मार देते हैं मासूमों को, 
नफरतों का बाजार अब और नहीं।

©Senty Poet #Agarwal #Priya #Khan #SINGH #Srivastava #Jain 

#26/11
jassalamarjit5769

Senty Poet

Bronze Star
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