धुंए का गुबार अब और नहीं क़त्लखाने का समान अब और नहीं, न जाने क्यूं चंद लोग रंज रख कर मार देते हैं मासूमों को, नफरतों का बाजार अब और नहीं। ©Senty Poet #Agarwal #Priya #Khan #SINGH #Srivastava #Jain #26/11