संभलने दे ज़रा अभी नासूर बन गम रिस रहा है, ज़ख्म ताज़ा हैं अभी, घाव भी नया-नया है । न उम्मीदें लगा मुझसे यूँ मुस्कुराने की, तू क्या जाने जो खोया उसकी कीमत क्या है ? संभलने दे ज़रा तपती रेत पर चल कर आई हूँ दूर से, अभी तेरे संगमरमर भी मेरे पाँव के छालों को जलाते हैं । न चिराग जला मेरी खातिर दहलीज़ पर, मुझे रोशनी की एक किरन भी आँखों में चुभती है । संभलने दे ज़रा अभी कमज़ोर हैं कदम, लड़खड़ा जाते हैं, सहारे की आदत न हो जाए बस इस बात से डरती हूँ । चलने दे अकेला कुछ दूर, यादें मुझको सताती हैं, अभी महफिल में शिरकत मुझे तन्हा कर जाती है । -Copywrite 2019 Meenakshi Sethi, Wings Of Poetry #संभलने दे ज़रा #collab #yqbhaijan #wingsofpoetry