चले आओ तुम्हारे बिन दियों की लौ हुई मध्यम चले आओ उमड़ती आंख में पीड़ा विरह की नम चले आओ छुआ था अनछुए मन के जटिल उस प्रश्न को जब भी मेरी नम आंख उसका हल तुम्ही में खोजती अब भी अब इन आंखों में आंसू रह गए हैं कम चले आओ वो तुमसे बेरुखी रखना रही आदत या मजबूरी समर्पण का विरोधी ये अहम् इससे जनी दूरी मुझे डसते यही अहसास अब हरदम चले आओ! चले आओ #इन्तजार #पछतावा #पश्चात्ताप #प्रेम #गीत