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हर युग के अवशेषों से यह प्रश्न पूछना! क्या द्वंदों

हर युग के अवशेषों से यह प्रश्न पूछना!
क्या द्वंदों के प्रतिफल से भी जीत मिला करती है!

कुरुवंशज की नीति वहां पर मौन खड़ी थी,
भरी सभा में जब सन्नाटे चीख रहे थे!
बंधित लाये रंगमंच पर रजस्वला को,
दुःशासन की जांघें व्याकुल दीख रहे थे!
अपितु हमारा प्रश्न दूसरा है इति से अब,
विध्वंसों में तुम क्यों दक्ष बने फिरते हो!
प्रश्नों के उत्तर से चिन्तित होने वालों,
अंधियारों में फिर क्यों यक्ष बने फिरते हो!


सब ग्रंथों के उपसंहार में, 
नारी क्यों भयभीत मिला करती है!
हर युग के अवशेषों से यह प्रश्न पूछना,
क्या द्वंदों के प्रतिफल से भी जीत मिला करती है!


महीपति तब भी चक्षुविहीन हुआ करते थे,
द्वापर में भी छल से काफी काम हुए थे,
आलौकिक थी त्रेता की वह प्रेम कहानी,
तुलसी की रामायण में संग्राम हुए थे!
योजन नापे रघुनंदन ने सेतु बनाकर,
संयोजकता के बल पर वह सफल हुए थे!
दम्भ में उलझे नृपों को मही में पिघलाकर,
पर महिजा को पाने में वह विफल हुए थे!

आसक्ति हमारी माता सिय से पूछ रही है!
अग्निपरीक्षा देकर भी क्या प्रीत मिला करती है!
हर युग के अवशेषों से यह प्रश्न पूछना,
क्या द्वंदों के प्रतिफल से भी जीत मिला करती है!

आशीष गौड़ हर युग के अवशेषों से यह प्रश्न पूछना!
क्या द्वंदों के प्रतिफल से भी जीत मिला करती है!

कुरुवंशज की नीति वहां पर मौन खड़ी थी,
भरी सभा में जब सन्नाटे चीख रहे थे!
बंधित लाये रंगमंच पर रजस्वला को,
दुःशासन की जांघें व्याकुल दीख रहे थे!
अपितु हमारा प्रश्न दूसरा है इति से अब,
हर युग के अवशेषों से यह प्रश्न पूछना!
क्या द्वंदों के प्रतिफल से भी जीत मिला करती है!

कुरुवंशज की नीति वहां पर मौन खड़ी थी,
भरी सभा में जब सन्नाटे चीख रहे थे!
बंधित लाये रंगमंच पर रजस्वला को,
दुःशासन की जांघें व्याकुल दीख रहे थे!
अपितु हमारा प्रश्न दूसरा है इति से अब,
विध्वंसों में तुम क्यों दक्ष बने फिरते हो!
प्रश्नों के उत्तर से चिन्तित होने वालों,
अंधियारों में फिर क्यों यक्ष बने फिरते हो!


सब ग्रंथों के उपसंहार में, 
नारी क्यों भयभीत मिला करती है!
हर युग के अवशेषों से यह प्रश्न पूछना,
क्या द्वंदों के प्रतिफल से भी जीत मिला करती है!


महीपति तब भी चक्षुविहीन हुआ करते थे,
द्वापर में भी छल से काफी काम हुए थे,
आलौकिक थी त्रेता की वह प्रेम कहानी,
तुलसी की रामायण में संग्राम हुए थे!
योजन नापे रघुनंदन ने सेतु बनाकर,
संयोजकता के बल पर वह सफल हुए थे!
दम्भ में उलझे नृपों को मही में पिघलाकर,
पर महिजा को पाने में वह विफल हुए थे!

आसक्ति हमारी माता सिय से पूछ रही है!
अग्निपरीक्षा देकर भी क्या प्रीत मिला करती है!
हर युग के अवशेषों से यह प्रश्न पूछना,
क्या द्वंदों के प्रतिफल से भी जीत मिला करती है!

आशीष गौड़ हर युग के अवशेषों से यह प्रश्न पूछना!
क्या द्वंदों के प्रतिफल से भी जीत मिला करती है!

कुरुवंशज की नीति वहां पर मौन खड़ी थी,
भरी सभा में जब सन्नाटे चीख रहे थे!
बंधित लाये रंगमंच पर रजस्वला को,
दुःशासन की जांघें व्याकुल दीख रहे थे!
अपितु हमारा प्रश्न दूसरा है इति से अब,