"फर्क पड़ता है" कोई फर्क नहीं पड़ता न तुम्हें किसी के चीखने चिल्लाने का,किसी के आंसू बहाने का। खैर क्यों ही पड़ेगा फर्क अब तुम्हें। उसे मगर पड़ता है फर्क हर चीज का। जब आती हैं बातें तुम्हारी ही पुरानी याद, खुल जाती है नींद यूं ही रातों में अक्सर तो फर्क पड़ता है। खुदा बनाकर पूजा जिसे हरदम, उसे फर्क न पड़े तो फर्क पड़ता है हां मुझे फर्क पड़ता है क्या ही मांगा था तुमसे क्या तुम बन गए। जमाने भर के झूठे इल्जाम लगाकर, गुनाह क्या था बता दिया होता आकर। हजार गुनाह थे कुबूल मगर तुमने झूठ को सही माना तो फर्क पड़ता है। सोचता हूं रातों में बेवजह यूं उठकर कहीं होकर भी कहीं नहीं रहता अब शायद फर्क पड़ता है। तुम्हें जीने में खुद को कहीं छोड़ दिया अब किसे जीयूं क्योंकि फर्क पड़ता है। ये जो बातें हैं सब फिजूल हैं तुम्हारे लिए ,मेरे लिए हैं जरूरी क्योंकि फर्क पड़ता है। अब तुम्हारा कई बार ऑनलाइन रहना कितने मैसेज थे करे कोई जवाब न मिलना।तुम्हे कोई फर्क न पड़े तो फर्क पड़ता है। तुम्हारे लिए था मसला चंद दिनों का, किसी की गुजरी कई सालें गुजार देखो कभी लगे पता क्या फर्क पड़ता है।कितनी आसानी से खामोशी ओढ़ ली तुमने मैं आज भी चीख रहा क्योंकि मुझे फर्क पड़ता है। दुआओं में उठते थे हाथ जिसकी खातिर वोही काटे हाथों को तो फर्क पड़ता है।, दूर जाने के लिए जिस झूठ का लिया सहारा तुमने उसे सच साबित कर जाना तुम्हें फर्क नहीं मगर मुझे फर्क पड़ता है। मैं चाहूं भी तो तुम हो नहीं सकता क्योंकि मुझे फर्क पड़ता है। ये बातें जो सब फिजूल हैं तुम्हारे लिए ,जरूरी हैं मेरे लिए मुझे फर्क पड़ता है। बहुत कुछ दफन है सब नहीं निकाला जा सकता क्योंकि फर्क पड़ता है। ©Sanjiv Chauhan #फर्कपड़ताहै