ख़ामोशी ज़िन्दगी के कुछ फ़लसफ़े हमे भी सिखाये कोई , जिंदा होकर भी मरने का हुनर हमे भी सिखाये कोई । संदूक भर चुकी है खुशियां समेटते-समेटते , सब बेच दूँगा अगर अच्छा खरीददार आये कोई । बता भी दूँगा कुछ राज़ अपने सरगोशियों के , पहले इजाज़त तो उनसे मांग लाये कोई । बहुत कुछ है दिल मे जिसे मैं फूँक देना चाहता हूँ , बस इल्तज़ा है कि ढंग की आग लगाए कोई । यूँ ही नही उम्र बीती है इस दलदल में , जाओ पहले एक दरिया पार कर आओ कोई । तजुर्बा है तभी तो बेबस कहा है खुद को , ग़र झूठा हूँ तो पहले खुद के गिरेबां में झाँके कोई । "दानिस्ता सच न बोलना आदत है मेरी ," पहले तो ये सच बोल के दिखाए कोई । जो भी हूँ -जैसा भी हूँ तेरे सामने हूँ , अब इस सच को झूठ बनाये कोई । मोहब्बत के हर रंग को देख चुका हूँ , उम्मीद है अब ये ज़हर भी आजमाए कोई । ख़ामोशी ।