दुश्वार हे अब तो मुझ पे भी वजूद मेरा जिस कि खातिर था काफिर अब तो वो भी नहीं मेरा महफिलें दिल मुहल्ले में अब सजा नहीं करती फकत कांच सा था ख्वाब टूट गया मेरा फासले उससे दूरियों के नहीं थे जॉन बहोत करीब था में उसने नाम नहीं लिया मेरा भरे हैं जज्बों से पर जाम छलके नहीं अब तलक सिर्फ घायल होके गिरा है हौसला टूटा नहीं मेरा #akshat late night thoughts #feeling #night #random #anonymous #mood #jaunelia #poetry