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मुद्दत हुई लैला को शहर छोड़े अब इस गली में उसकी खोल

मुद्दत हुई लैला को शहर छोड़े अब इस गली में उसकी खोली नहीं है,
मजनूँ अब भी उसी गली में जैसे रस्सी खूंटे से तो खोल दी हो पर गले से खोली नहीं है।
मुद्दत हुई लैला को शहर छोड़े अब इस गली में उसकी खोली नहीं है,
मजनूँ अब भी उसी गली में जैसे रस्सी खूंटे से तो खोल दी हो पर गले से खोली नहीं है।