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कहीं मयस्सर नहीं धूप किसी को कहीं जले हैं मकान सार

कहीं मयस्सर नहीं धूप किसी को
कहीं जले हैं मकान सारे
कहीं उदासी के दायरे हैं
कही खुशी के जहान सारे।
#अबोध
कहीं मयस्सर नहीं धूप किसी को
कहीं जले हैं मकान सारे
कहीं उदासी के दायरे हैं
कही खुशी के जहान सारे।
#अबोध
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