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तूं गंगा-सी कलकल बहती रहे मैं घाट-सा बिछा तुझे तकत

तूं गंगा-सी कलकल बहती रहे
मैं घाट-सा बिछा तुझे तकता रहूं..
तूं आरती-सी जन में उम्मीद करती रहे
मैं घंण्टे की घुन-सा तेरा तालमेल करता रहूं..
तूं तंग गलियों-सी उलझाए-रिझाए मुझे
मैं फिर चौराहे से तुझे मिलता रहूं..
तूं जलेबी-सी मीठी चाशनी में डूबी रहें
मैं नरम पत्तों-सा तुझे थामता रहूं..
तूं पार्वती-सी अघरों में प्रियतम के बसती रहें
मै अविनाशी कैलाशपति तुझे
शिव-सा स्नेह करता रहूं..🔱

©Avinash Mishra
  #HappyMahaShivratri2023