इंसानियत.... चल राही बन मुसाफ़िर, धर्म मजहब की हदोंसे पार। छोड़ के ऐसे काफिले तू, इंसानियत थोडी ले उधार। कतलेआम से कुछ ना हासिल होगा। नफरत के समंदर का ना साहिल होगा। डूब ही जाना है घमंड तेरा आपनोसे पाए जखमोंका तू घायल होगा। तोड़ के घमंड के बंधन सभी,चल लाने आमन की बहार। छोड़ के ऐसे काफिले तू, इंसानियत थोडी ले उधार। जो बोएगा आे पाएगा ये दुनिया की रीत है। फैलाते चल आमन की धुन, ये ही सच्छी प्रीत है। बोएगा जो बारूद अभी, विस्फोट उसका तय है। एकता की तू नदिया जोड़, यही तेरी जीत है। एक ही खुदा के बंदे हम, जान ले ये भाव अपार। छोड़ के ऐसे काफिले तू, इंसानियत थोडी ले उधार।.... कविराज। 8698845253 इंसानियत।.....