#जब मिलूँगी..... तुमसे मिलने पर संभवतः न बता पाऊँ दिवस और तिथियों के व्यतीत होने की असमान गति! पर फिर भी यह तय है कि लंबे दिनों का लंबी रातों में परिवर्तित होना अनायास ही नहीं हुआ! कुछ क्षण पुनः जीने की एक तीव्र उत्कंठा के संग ही विदा हो गए मैं कहाँ नकारती हूँ इच्छाओं के प्रति अपना मोह! पर दिवस के अंत में फिर एक फूल के झरने का दुःख धरा वहन नहीं कर पाती कठिन है परिचित स्मृतियों में स्वयं को ही अपरिचित पाना! तुम भी तो जानते हो कि किसी भी भाषा के लिए आसान नहीं है हृदय से विस्थापित प्रेम की मंथर पीड़ा को आजीवन ढोना! जब मिलूँगी तो तुम्हारे कंधे से सिर टिकाकर शायद तुम्हें समझा पाऊँ एक पुष्प की चिरकालीन यात्रा प्रेम की विरामचिह्नों रहित भाषा और धरा के दुःख!! --सुनीता डी प्रसाद💐💐 #जब मिलूँगी..... तुमसे मिलने पर संभवतः न बता पाऊँ दिवस और तिथियों के व्यतीत होने की असमान गति! पर फिर भी यह तय है कि लंबे दिनों का