जब साहिर का नाम लिखना ही था तो इमरोज़ की पीठ क्यूँ साहिर की छाती पर क्यूँ नहीं वो सिगरेट के ठुड्डों से चुराए हुए कश और वो चाय के खाली कपों से किया इज़हार वो साहिर के घर की सीढ़ियों पर लिखी हुई ग़ज़ल वो इश्क़ था अगर तो इश्क़ था मगर जो इमरोज़ की कूची के रंगों में साहिर का तासुवर करना ही था तो साहिर के घर पर क्यों नहीं कहते हैं उसके घर के आइनों में ख़्वाब चलते थे साहिर जो ना कह कह सका वो दुनिया क्या खाख़ समझेगी और अमृता की वसीयत के चर्चे बढ़े हैं इतना तो लिख गया था साहिर हिसाब में कि जो अज़नबी थे अज़नबी, अज़नबी ना रह सके ~जो साहिर का नाम अमृता हो ©Mo k sh K an #SahirLudhianvi #AmrtaPritam #mokshkan #Love #poem #Poetry #LoveStory