जड़ें नहीं काँटनी हमें अपनी संस्कृति की महज़ तलाश है सुसंस्कृत व्यवस्था की मन के संस्कार की...विकार के उपचार की परम्पराओं के समुचित परिष्कार की प्राण और प्रकृति के स्नेह के आधार की सदियों से पूजते आएँ हैं हम सूरज-चाँद नदी, पर्वत, पेड़-पौधे, धरती-आसमान सभी को सोचनी है बात अपने प्रतिदान की पूजते हैं पेड़ कि दीर्घायु हो प्राण पूजते हैं जल हो तृषा का समाधान पूजते हैं पर्वत हों बादल अमियमान पूजते हैं सूर्य पुलकित हो मनप्राण हो हृदय परिष्कृत सो पूजते हैं चाँद पूजते हैं अग्नि कुछ शीत पाए त्राण पूजते हैं धरा अंकुरित हो जीवन-धान संतुलित हो रसपुंज सो पूजते हैं आसमान ये व्रत त्योहार हैं धारणीय विकास-गान फिर क्यों कहीं पति कहीं पुत्र है प्रधान? चिरन्तन प्रकृति हो सौरभित संरक्षित और सुरक्षित सुपुष्ट जग में प्राण संचेतन परम्परा संवहन में हो सबका योगदान #nature#naturaltradition#resistingtradeofwelfare#yqtraditionlive#yqhindi