"बिन फेरे हम तेरे " बस आज अपना डर लिख रहा हूँ या यूँ कहूँ कि तुम्हें लिख रहा हूँ ,,,,,,,,,,,,,,,, डर ये था कि कुछ पढ़ लिख के बन जाऊँ पढ़ तो गया पर कुछ खास न बन सका,,,,,,,,,,,,, खास इसलिए बनना था के तुम आम सी नहीं लगती हो मुझे ,,,,,,,,,,,,,,,,, डर ये रहता था बचपन में के स्कूल तुमसे पहले पहुँच जाऊँ ताकि तुम्हें आते हुए देख सकूँ के ऐसे ही आयेगी इक दिन ज़िन्दगी मेरे घर,,,,,,,,,, पर इस डर ने डरा दिया के मेरे मिट्टी की दीवालों वाले घर में शीशे की ज़िन्दगी कब तक सलामत रहेगी अपनी ही ज़िन्दगी को पिजड़े में कैद थोड़ा रखूंगा ,,,,,,,,,,,,, इस डर के साथ आगे पढ़ने बाहर गया था कि इक दिन मेरी आम से भी आम ज़िन्दगी तेरा मेरा हाथ भर थाम लेने से खास हो जायेगी ,,,,,,,,,,,,,,,,, डर ने मुझे बहुत दौड़ाया, दौड़ने के बाद भी कभी रेस खत्म नहीं हुई आज तक दौड़ रहा हूँ बस दौड़े जा रहा हूँ ,,,,,,,,,,,,,,,,,,, उस दिन भी दौड़ ही रहा था तेरे शहर में इस डर से के ट्रैन न छूट जाए के सामने से ज़िन्दगी आती हुई दिखी मैं थम गया के अब नहीं डरना जाने दो ट्रैन को ये है वो ज़िन्दगी जो अब तक मैंनें जी ही नहीं,,,,,,,,,,,,,,,,, ©️✍️ सतिन्दर #NojotoQuote बिन फेरे हम तेरे -2 "बिन फेरे हम तेरे " बस आज अपना डर लिख रहा हूँ या यूँ कहूँ कि तुम्हें लिख रहा हूँ ,,,,,,,,,,,,,,,, डर ये था कि कुछ पढ़ लिख के बन जाऊँ पढ़ तो गया पर कुछ खास न बन सका,,,,,,,,,,,,, खास इसलिए बनना था के तुम आम सी नहीं लगती हो मुझे ,,,,,,,,,,,,,,,,, डर ये रहता था बचपन में के स्कूल तुमसे पहले पहुँच जाऊँ ताकि तुम्हें आते हुए देख सकूँ के ऐसे ही आयेगी इक दिन ज़िन्दगी मेरे घर,,,,,,,,,,