2017 और मैं - एक छोटी सी लव स्टोरी कमरे में खिड़की के पास बैठी देख तो रही थी बाहर पर मन कहीं और ही था मेरा, ना गाड़ियों का शोर सुनाई दे रहा था और ना ही लोगों की आवाज़ें, (full story in caption)👇 कमरे में खिड़की के पास बैठी देख तो रही थी बाहर पर मन कहीं और ही था मेरा, ना गाड़ियों का शोर सुनाई दे रहा था और ना ही लोगों की आवाज़ें, मेरा दिमाग तो जिस चीज़ के आसपास घूम रहा था,वो था मेरा और 2017 का रिश्ता।कितनी कोशिश की मैंने कि हम अलग ना हो,किसी भी तरह मैं इन जाते हुए पलों को रोक लूं, पर कुछ चीजों पर हमारा बस नहीं होता,जैसे-जैसे वक़्त बीत रहा दूरियां बढ़ती जा रही हैं। कितना कुछ देखा हमने साथ में,कभी ना भूलने वाले पल बिताए,हंसे, रोए,शिकवे किए,शिकायतें की,घूमना,फिरना सब किया पर आज ऐसे मुकाम पर आ ही गया हमारा साथ की जुदाई ही इसका अंजाम है।कैसे बताऊं इसको की 2018 मेरा हाथ थामना चाहता है,मेरे लिए सब करने को तैयार है,सपने पूरे करना चाहता है मेरे और मुझे भी लगता है कि अब आगे बढ़ने का वक़्त आ गया है। दुख तो होगा 2017 को पर वो प्रसिद्ध गीतकार की कुछ पंक्तियां हैं ना "वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना ना हो मुमकिन,उसे एक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा" यही सोचकर मुस्कुराते हुए मैं कलम और कागज़ उठाती हूं और खत लिखने लगती हूं 2017 के नाम- प्रिय 2017, प्रेम!