आकांक्षा / इच्छा/ ख्वाहिश जिन्दगी के मैदान में इंद्रधनुष के रंगों सी बिखरी है ख्वाहिशे। जीवन से लेकर मौत तक हर एक पड़ाव में साथ चलती ख्वाहिशे। कभी धुंआ बन बादलो तक ले जाती ये इच्छाये ही तो है जो हर कुछ करवा जाती। जीवन मे जीवंतता का एहसास दिला आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा है इच्छा। हर उम्र के पढ़ाव संग रंग बदलती है बचपन मे मौज मस्ती और चन्द खिलोनो कुछ चॉक्लेट और मिठाई की मिठास में बस जाती है । रात होते नानी दादी की कहानियों संग मासूम अखियों में नींद संग छुप जाती है। जवानी में शौर्य , दौलत, और प्रेयसि को पाने का जुनून बन जाती है। बुढ़ापे में सिकुड़ी आँखो , झुकी कमर ,बालो की सफेदी संग अपने ही बच्चो से प्यार और साहूकार छलकाती इच्छा। हर सुबह रोशनी बन चमक जाती आँखो में रातो के अंधेरो में काजल बन छुप जाती पलको तले। गहराइयों से दिलो की रखती है वास्ता अन्त में यही दिखाती खुदा के घर जाने का रास्ता। दुनियां के आडम्बरो और मोह माया से जब इन्सान की हो पहचान वैराग्य का संगीत बन ईश्वर की खोज में जीवन पथ पर आगे बढ़ मोक्ष की राह दिखाती यही इच्छा। इच्छा अनस्वर है नश्वर शरीर का समशान में पंचतत्वों में विलीन हो जाने पर भी जीव के रूह संग लिपट पुनर्जन्म में फिर लौट आती है इच्छा और जीवन के हर क्रम को फिर दोहराती इच्छा। कविता जयेश पनोत Ig-@ kavita8panot Written on 22 may 5am ©Kavita jayesh Panot #ज़िन्दगी#इच्छा#आकांशा#ख्वाहिशें