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कृष्ण तुम पर क्या लिखूं, कितना लिखूं। रहोगे तुम फ

कृष्ण तुम पर क्या लिखूं, कितना लिखूं।

रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं।
 
प्रेम का सागर लिखूं, या चेतना का चिंतन लिखूं।

प्रीति की गागर लिखूं या आत्मा का मंथन लिखूं।

रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं।

तुम्हारी राधा कृष्णा
कृष्ण तुम पर क्या लिखूं, कितना लिखूं।

रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं।
 
प्रेम का सागर लिखूं, या चेतना का चिंतन लिखूं।

प्रीति की गागर लिखूं या आत्मा का मंथन लिखूं।

रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं।

तुम्हारी राधा कृष्णा