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रफ़्ता-रफ़्ता आज मेरी गली में एक महताब छाया होगा,

रफ़्ता-रफ़्ता आज मेरी गली में एक महताब छाया होगा,
शायद! उस चांद से मिलने ख़ुद ख़्वाब आया होगा।

क़तरा-क़तरा बहाया था आंखों से उस रूख़्सार-ए-जमाल के ख़ातिर मैंने,
पर तलब ऐसी की अपने हाथों से किसी ने उसके नक़्श को सजाया होगा।

दैर पर आतिश बहुत थी तब अक़ीदत उसकी देखी मैंने,
मुन्तज़िर हूँ उसका जिसकी हया ने एक ना-चीज़ को पागल बनाया होगा।

तक़ल्लुफ़ क्यों करूँ मैं उस महबूब की जिंदगी-ए-साज से,
जिसके बस एक स्पर्श ने मुझे दीवाना बनाया होगा।

बहुत मशग़ूल था वो चाँद अपने मन्सूब के ख़्यालों में,
जिसकी लज्जत ने मेरे आरिज़ को बेइंतिहा महकाया होगा। गज़ल💕💕
शब्दार्थ👇👇
रफ़्ता-रफ़्ता- धीरे-धीरे 
क़तरा-बूँद 
रूख़्सार-गाल/कपोल
जमाल-सौन्दर्य/खूबसूरती 
 तलब-इच्छा 
नक़्श-निशान
रफ़्ता-रफ़्ता आज मेरी गली में एक महताब छाया होगा,
शायद! उस चांद से मिलने ख़ुद ख़्वाब आया होगा।

क़तरा-क़तरा बहाया था आंखों से उस रूख़्सार-ए-जमाल के ख़ातिर मैंने,
पर तलब ऐसी की अपने हाथों से किसी ने उसके नक़्श को सजाया होगा।

दैर पर आतिश बहुत थी तब अक़ीदत उसकी देखी मैंने,
मुन्तज़िर हूँ उसका जिसकी हया ने एक ना-चीज़ को पागल बनाया होगा।

तक़ल्लुफ़ क्यों करूँ मैं उस महबूब की जिंदगी-ए-साज से,
जिसके बस एक स्पर्श ने मुझे दीवाना बनाया होगा।

बहुत मशग़ूल था वो चाँद अपने मन्सूब के ख़्यालों में,
जिसकी लज्जत ने मेरे आरिज़ को बेइंतिहा महकाया होगा। गज़ल💕💕
शब्दार्थ👇👇
रफ़्ता-रफ़्ता- धीरे-धीरे 
क़तरा-बूँद 
रूख़्सार-गाल/कपोल
जमाल-सौन्दर्य/खूबसूरती 
 तलब-इच्छा 
नक़्श-निशान