समन्वय की भावना भारतीय संस्कृत की एक प्रमुख विशेषता है महेश जाति पंथ और भाषा की दृष्टि से हमारा देश तमाम विद में नेताओं से पुणे है इसलिए यहां समन्वय की उपादेयता और अधिक है इसके अभाव में विद्युत आएं मात्र विवादों की जन्म दात्री बनकर रह जाती है जबकि समन्वय विवाद का नहीं संवाद का विरोध काहे नहीं प्यार और सद्भाव का जनक है हमारी एक अन्य विशेषता अनेकता में एकता भी इसी समय से प्रस्तुत है समन्वय के अभाव में परिवार समाज और देश की प्रगति की बात बेमानी है इस जगत में एक ईश्वर की सेवा कुछ भी पूर्ण नहीं है फिर आयुर्वेद और एलोपैथी पूर्ण कैसे हो सकते हैं हर एक इनकी भी सीमा है हां यह दोनों एक दूसरे के पूरक बनकर लोक कल्याण जरूर कर सकते हैं वृष्टि रूप में व्यक्ति समाज की महत्वपूर्ण इकाई है एकल रूप में भले ही उसका कोई मूल्य नहीं दिखाई देता है पर वह मिलकर जब सम्मिलित रूप से समाज का निर्माण करते हैं तो कुछ भी असंभव नहीं रहता समन्वय का आश्रय लेकर ही विविध संस्कृतियों और सभ्यताओं का निर्माण होता है जो किसी देश की पहचान बनती है समाजिक संबंध में वह आधारशिला है जिस पर देश को बाहरी ताकत से कभी कोई खतरा नहीं होता यह सकल सृष्टि भी समन्वय का परिणाम है जब निराशा हताशा मुनि के जीवन में चतुर्थक गहन अंधकार था जीने का कोई मार्ग नहीं दिखा रहा था तब श्रद्धा ने उन्हें वह न केवल जीने का सहारा दिया वरना उनकी पूरक शक्ति बनकर सृष्टि के संचालक बनी महाकवि जयशंकर प्रसाद ने काम यानी में मानवता की विजय के लिए सृष्टि के बिखरे हुए सभी तत्वों को संगठित होकर एक हो जाने का शंखनाद किया है क्योंकि निरर्थक देखने वाला एक कण भी अपरिमित शक्ति प्रदान नहीं करता शक्ति के विरुद्ध जो व्यस्त विकल बिक रहे हैं वह रूपाय समय में उसका करें समस्त वैज्ञानिक मानवता हो जाए ©Ek villain #samney #stay_home_stay_safe