हिम्मत वो भी टूट कर बिखर गई अपने कदमों में खड़े होने से पहले ही डर गई चाहतें सबकी है बहुत बड़ी मगर आज वो चाहतें भी मर गई सौ दर्द के साथ थी कुछ उम्मीदें सूखे पत्तों की तरह वो भी झड़ गई रात बहुत बड़ी है अब तूफ़ान आएगा मगर फिर वो तूफानी रात भी खुद से ही लड़ गई खामोश थे कुछ पंछी वहाँ बस यूँ हीं वह हिम्मत दिखाते-दिखाते रह गई! शिवानी बिष्ट✍ ©SHBIST हिम्मत! . . . . . . .