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पहले जैसी बात नहीं। गरम लू से हो सजी भरी दोपहरी,

पहले जैसी बात नहीं।

गरम लू से हो सजी भरी दोपहरी, या ठिठुरता शाम का जाड़ा,
कहाँ कभी बदलते मौसम-ओ-वक़्त में, बदलता है इश्क़ गाढ़ा,
खोला सन्दूक धूल जड़ा, मिला पुरानी तस्वीरों में गुँथा एक पल,
तड़प उसी वक़्त-सी सिहर उठी, मानो छू गया हो वो गुज़रा कल,
चाँद की ग़ुलामी थी जब, जुगनुओं की माफ़िक़ भाता था अँधेरा,
ग़ज़लों में खो जाने की थी आदत, पड़ा था ऐसा इश्क़ का डेरा,
आज हाथों में तस्वीर तो है, पर हल्की धुँधली याद है वो शक़ल,
ना ही उसकी उस हँसी को देखके, हम हुए हैं पहले जैसे क़तल,
क्या वाक़ई में, वक़्त के मरहम से ज़ख्म भरना, एक हक़ीक़त है,
या पन्नों पे उतारी अपने दर्द की कहानी की, मिली हमें क़ीमत है,
ख़ैर जो भी हो, सयाना हुआ है दिल, बेक़ाबू अब जज़्बात नहीं,
मुस्कुराये अकेले बैठे हैं, तन्हा रोने में अब पहले जैसी बात नहीं।


- आशीष कंचन पहले जैसी बात नहीं - दिल टूटने से लेके ज़िन्दगी जुड़ने का सफ़र


#yqbaba #yqheartbreak #yqbrokenheart #yqlife #yqdidi  #yqlove #yqfeelings
पहले जैसी बात नहीं।

गरम लू से हो सजी भरी दोपहरी, या ठिठुरता शाम का जाड़ा,
कहाँ कभी बदलते मौसम-ओ-वक़्त में, बदलता है इश्क़ गाढ़ा,
खोला सन्दूक धूल जड़ा, मिला पुरानी तस्वीरों में गुँथा एक पल,
तड़प उसी वक़्त-सी सिहर उठी, मानो छू गया हो वो गुज़रा कल,
चाँद की ग़ुलामी थी जब, जुगनुओं की माफ़िक़ भाता था अँधेरा,
ग़ज़लों में खो जाने की थी आदत, पड़ा था ऐसा इश्क़ का डेरा,
आज हाथों में तस्वीर तो है, पर हल्की धुँधली याद है वो शक़ल,
ना ही उसकी उस हँसी को देखके, हम हुए हैं पहले जैसे क़तल,
क्या वाक़ई में, वक़्त के मरहम से ज़ख्म भरना, एक हक़ीक़त है,
या पन्नों पे उतारी अपने दर्द की कहानी की, मिली हमें क़ीमत है,
ख़ैर जो भी हो, सयाना हुआ है दिल, बेक़ाबू अब जज़्बात नहीं,
मुस्कुराये अकेले बैठे हैं, तन्हा रोने में अब पहले जैसी बात नहीं।


- आशीष कंचन पहले जैसी बात नहीं - दिल टूटने से लेके ज़िन्दगी जुड़ने का सफ़र


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