तुझे एक नज़र देख लूं तो ज़ी नहीं भरता वहीं नज़र तुझसे हटाने का मैरा ज़ी नहीं करता मैरा बस चले तो तैरी तस्वीरों का जहां बना दूं जहां तु नज़र न आए, बस वहां बना दूं तु कहे तो लफ़्ज़ों से महल बना दूं ताज सा मैं बरसों तक तैरा जिक्र करूंगा , हूबहू आज सा बस तु भी हूबहू रहना मैरे रूबरू रहना कहना मुझसे वो सब , जो तुने छीपा रखा है नज़र में रखना वो सब जो मैंने दिखा रखा है जो ईश्क तुने देखा था , वो अब भी वैसा ही है पर ज़माने में अब भी , चलता तो पैसा ही है हम हर रोज़ बिकते जाते हैं , औकात के बाज़ार में और खरीद नहीं पाते कुछ , इस सूफ़ी प्यार में ख्वाहीश चांद कि रखते हैं बस तुझे ही तकते हैं तेरी तस्वीरों के फुटपाथों पर अपनी गरीबी ढोते हैं मैं महसूस करता हूं जो एहसास होते हैं