लबों पर लिए हुए कोई ज़िक्र अता कर, ए दिल-ए-नादान तू मेरा फ़ैसला कर ।। जान कर अंजान बन न मेरी इंतिहां कर, दे कोई इल्जाम और मुझे बेनकाब कर । ए दिल-ए-नादान तू मेरा फ़ैसला कर ।। मुश्तकिल सा बैठ कर मेरा जुर्म क़रार पढ़ , लिख कोई सजा मुझे या जला मुझे अंगार पर । ए दिल-ए-नादान तू मेरा फ़ैसला कर ।। जले ना कोई रोशनी जहां मुझे तू क़ैद कर, नसीब मौत भी न हो बेतरतीब सा तू वार कर । ए दिल-ए-नादान तू मेरा फ़ैसला कर ।। -©अभिषेक अस्थाना(स्वास्तिक) तू मेरा फ़ैसला कर... लबों पर लिए हुए कोई ज़िक्र अता कर, ए दिल-ए-नादान तू मेरा फ़ैसला कर ।। जान कर अंजान बन