सपनों की 'तुलना' नहीं की जा सकती न ही सपने देखे जाते हैं 'प्रैक्टिकल' होकर प्रैक्टिकली 'जिंदगी' जी जाती है, जिंदगी 'रेंगती' है सपनों में होती है 'उड़ान' सपने को 'हौसले' की दरकार होती है जिंदगी चलती है 'रोजमर्रा के नियम' से सपने 'टूटने' पर 'बेचैनी' होती है जिंदगी हर समय 'सुकून की तलाश' है सपने लगते हैं 'काल्पनिक' जिंदगी को लोग वास्तविकता 'समझ बैठते' हैं ©sunday wali poem #WinterEve #sundaywalipoem