दिसम्बर की सर्दी में चौबे एक बार फिर अपनी मांद से बाहर निकले। काफ़ी दिन हो गए थे मिले तो हमने पूछा “कस बे चौबे कैसा है सब?” उसने हमें एकटक देखा और बोला, “गुरु एक बात पूछनी है, आपके साथ ऐसा हुआ है क्या? आप हाथ में चाय का कप ले कर आँगन में बैठें और फिर कोई गली से आपको नमस्ते कर पधारे। फिर वो आपको कुछ ऐसा सुनाए के आप उसी में मशगूल हो जाएँ। फिर पता भी नहीं चलता आपकी चाय कब ख़त्म हो गयी। पहली चुस्की का मज़ा याद रहता है। चलिए कोई बात नहीं, कल ही तो राशन लाए थे। फिर आप आँगन से घर के अंदर जाएँगे और देखेंगे के ना चाय बची है ना चीनी। क्या है न के कहानीकार आपके पड़ोसी का चहेता था तो उसके भाई बंधू कब कहानी सुनते पधारे और कब राशन का बँटवारा कर के निकल लिए आपको पता नहीं चला। कहानी बहुत बढ़िया थी वैसे। सुनने में अजीब लगता है न? ये पूरा साल वही चाय का कप था। बाक़ी आप तो समझदार हैं।” हम सोच रहे थे के टिप्पणी करें लेकिन चौबे चुपचाप मिसाइल की गति से हमारे पीछे रखे पीकदान को थोड़ा कत्था समर्पित किए और चलते बने। वापस आ गए चौबे जी। नया खेल शुरू करने की कोशिश है। प्रस्तुत है हम तो बस कह रहे थे #Ep8 Click on #HTBKRT #AdventuresOfChoube for more episodes. प्यार बनाए रखिएगा!