... रखी बचा प्रतीक्षा की बैचैनी कभी रंजनीगंधा गुंथ सुगन्ध कभी किरणों पर सोने चढ़ी कभी नीम सी गले अटकी शहद सम मिठी स्मृति बनी... इत उत पल पल अब तब हुई बस एक मिलन की होड़ लगी। श्रृंगार सोलह कर लो केश कुंतल संवार लो काजल की धार पहन कानों में पड़ी बालियां उसमें झूलती झुनकियां! होठों पर पराग सी लाली परिमल बन मन सुंदर