चले इतनी रफ़्तार से की कुछ खबर न पाया! एक पल तो ठहरा था पर मैं ठहर न पाया, आदत ही ऐसी हो गई इस नए मिजाज के शहर में ।। शहर के शहर बदले पर कोई शहर नजर ना आया। हर वक्त खुद को मैंने उलझनाे में फंसा पाया। बड़े दिनों के बाद एक आईना कहीं से लाया। निहारने लगा मैं अपनी भोली सूरत को।। यह सोच इस शहर में मैंने क्या पाया?? खुद से जब मैं ऊब कर रवाना किया घर को, पहुंचा तो मुझे मेरा घर नजर ना आया । हर शक्स मुझ को घूरने लगा इस तरह से की । एक इंसान है मैं मैं उन्हें कोई इंसान नजर ना आया ।। बड़े दिनों के बाद मिली फुरसत मुझे इतनी:; रोने की कोशिश की पर एक आंसू भी ना आया।। लोगों को हंसते देख मैं भी हंस तो देता था, हर बार मुझे अपनी हंसी में एक चोर ही नजर आया।। क्या था जब मैं निकला था घर से आया तो क्या पाया?? कभी थोड़ी सी जी सकूं सकूं:; क्या? इतना अवकाश भी न पाया।। अभी हिसाब भी पूरा नहीं हुआ था की;; दस्तक मौत का आया।। जिस से भागे भागे फिरते थे;; आज उसे सबसे करीब पाया।। ................................... NILMANI THAKUR #MeraShehar