कुछ इस तरह गरीब को सताया जा रहा है कभी डराया तो कभी धमकाया जा रहा है चार पैसे क्या कमा लिए है शहर जा कर हम गरीब को गावँ से भगाया जा रहा है खोने को जिसके पास कुछ भी नहीं बचा उसकी ज़मीन पर हक जताया जा रहा है पैसे बालो के पीछे चमचे ही फिरा करते है ईमान बाले को बईमान बताया जा रहा है भूलना ही है तो भूलते क्यों नहीं दुश्मनी कमज़रो को कर्ज तले दबाया जा रहा है पैसों की मद में क्या ख़ूब रंजिश है निभाई आंगन की बीच में दीवार बनाया जा रहा है ©prakash Jha कुछ इस तरह गरीब को सताया जा रहा है कभी डराया तो कभी धमकाया जा रहा है चार पैसे क्या कमा लिए है शहर जा कर हम गरीब को गावँ से भगाया जा रहा है खोने को जिसके पास कुछ भी नहीं बचा उसकी ज़मीन पर हक जताया जा रहा है