मुंडों की माला पहना दो मां भारती को रक्त से नहला दो आतंकी फिर कोई बन न पाये तुम ऐसा कोहराम मचा दो शावकों की हुँकार भरो अब मां चण्डी का यज्ञ करो अब दुश्मन थर थर नाम से कापें रुद्र विकराल रूप धरो अब शंखनाद कर दो युद्ध का छोड़ो पथ अब तुम बुद्ध का अब रण दुंदभि बजानी होगी इस मां की लाज बचानी होगी गड़गड़ाहट बिजली सी कर दो इस धरा को रक्त से भर दो हर आतंकी की भुजाएँ काटो अब उन्हें दो गज जमीं ना बाटो गद्दारों को चुनना होगा मेजर गोगोई सा बनना होगा अश्रु बम अब रास ना आते मानव बम अब बनना होगा हेमराज के कटे सर से खेला उरी हमले को भी हमने झेला पुलवामा के हर चिथड़े कहते देखो मांओं के अश्रु बहते प्रतिशोध तो अब लेना होगा इस माटी का कर्ज देना होगा आईना दिखा दो अब तो गीदड़ की औलादों को गिन ना पाए सामने कर दो तुम इतने फोलादों को ये जन्नत रक्त की प्यासी है तो अब रक्त की नदियां बहने दो आश्रय दे जो आतंकी को अब उसकी बलियाँ लेने दो अलगाववाद को दफन करो अब छप्पन इंची सीने से ये दुश्मन ना बदलेगा अब कड़वा घूट पीने से सौगंध राम की खाकर अब इस लंका पर चढ़ना होगा गांडीव धनुष की ध्वनि से हर आतंकी को डरना होगा युद्ध हुआ जो इस बार तो सब आर पार कर देना तिरंगा लिए हाथ में अब लाहौर पार कर देना रावल पिंडी इस्लामाबाद का फिर नामकरण करना होगा पाकिस्तान का नाम मिटा अब नया हिंदुस्तान रचना होगा जिस दिन लाहौर में भारत का ये तिरंगा लहराएगा इस जन्नत में दी हर कुर्बानी का फल तभी मिल पायेगा। इस जन्नत में दी कुर्बानी का फल तभी मिल पायेगा। जय हिंद । जय भारत। रचयिता:- बलवन्त सिंह रौतेला रूद्रपुर दिनाँक :-19/02/2019