कुछ हादसों ने ज़िंदगी बदल दी हमें भी जीना था खुल कर ज़िंदगी मगर खुद को ख़ुद में ही कैद पाता हूं कुछ भी नहीं भाता दिल को मैं अक्सर बाजारों से ख़ाली हाथ लौट आता हूं एक कब्रिस्तान बसता है मेरे अंदर जहां ख्वाहिसे दफन कर रखा है जंजीर बंधी है हाथों में कंधे पर जिम्मेदारियों का बोझ रखा है मंज़िल का भी अता पता नहीं है कुच जाने किधर जाना है मुसाफ़िर ने मंजिल मिलनी भी है या उम्र गुजरनी है यूं ही रास्ते में ही मर जाना है ©Nikhil Kumar #SAD #Life #yun_hi