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कुछ हादसों ने ज़िंदगी बदल दी हमें भी जीना था खुल

कुछ हादसों ने ज़िंदगी बदल दी 
हमें भी जीना था खुल कर ज़िंदगी
मगर खुद को ख़ुद में ही कैद पाता हूं
कुछ भी नहीं भाता दिल को
मैं अक्सर बाजारों से ख़ाली हाथ लौट आता हूं
एक कब्रिस्तान बसता है मेरे अंदर
जहां ख्वाहिसे दफन कर रखा है
जंजीर बंधी है हाथों में
कंधे पर जिम्मेदारियों का बोझ रखा है
मंज़िल का भी अता पता नहीं है कुच 
जाने किधर जाना है 
मुसाफ़िर ने मंजिल मिलनी भी है
या उम्र गुजरनी है यूं ही 
रास्ते में ही मर जाना है

©Nikhil Kumar #SAD #Life #yun_hi
कुछ हादसों ने ज़िंदगी बदल दी 
हमें भी जीना था खुल कर ज़िंदगी
मगर खुद को ख़ुद में ही कैद पाता हूं
कुछ भी नहीं भाता दिल को
मैं अक्सर बाजारों से ख़ाली हाथ लौट आता हूं
एक कब्रिस्तान बसता है मेरे अंदर
जहां ख्वाहिसे दफन कर रखा है
जंजीर बंधी है हाथों में
कंधे पर जिम्मेदारियों का बोझ रखा है
मंज़िल का भी अता पता नहीं है कुच 
जाने किधर जाना है 
मुसाफ़िर ने मंजिल मिलनी भी है
या उम्र गुजरनी है यूं ही 
रास्ते में ही मर जाना है

©Nikhil Kumar #SAD #Life #yun_hi
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Nikhil Kumar

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