भाव शरीर में पैदा नहीं होते। बुद्धि में पैदा नहीं होते। मन में उत्पन्न होते हैं मन की चंचलता के कारण प्रतिक्षण बदलते चले जाते हैं। एक ही तरह के भाव जब बार-बार उठते हैं अथवा लम्बी अवघि तक वर्तमान रहते हैं तब भावना का रूप ले लेते हैं। नित्य स्वाध्याय के पीछे भावनाओं को पैदा करने की अवधारणा ही है। :💕👨 भावनाओं के लिए एक अच्छी कहावत है। मन चंगा तो कठोती में गंगा। जो कुछ घटित होता है, उसमें भाव क्रिया का बड़ा योग रहता है। कुन्ती ने एक बार कृष्ण से पूछा कि पाण्डव जब जुए में सब कुछ हार रहे थे, तब तुमने उन को क्यों नहीं बचाया। क्यों उनको वनों में भटकना पड़ा? तुमने द्रोपदी की ही सहायता की। : कृष्ण ने कहा-बुआजी किसी भी पाण्डव ने मुझे याद ही नहीं किया। द्रोपदी ने किया और मैं आ गया। द्रोपदी ने भी द्वारका वाले को बुलाया तो आने मेे देर लगी। घट-घट वासी को बुलाती तो भीतर ही बैठा था। तुरन्त आ जाता। अर्थ भावना का है। भावना से आस्था का गहरा नाता है। आस्था भी एक भावना है। जीवन में सम्बन्ध भी भावनाओं के साथ जुड़ते हैं। इसमें राग-द्वेष, ईष्र्या जैसे भाव जुड़े रहते हैं। आदान- प्रदान के सम्बन्ध मूलत: इसी प्रकार के भावों से ओत-प्रोत रहते हैं। इन्हीं के कारण कर्म बंधन कारक बन जाते हैं। : #komal sharma #shweta mishra #deepali suyal