तन्हा तन्हा ही चलते रहे हम, लम्हा लम्हा तन्हा ही रहे हम, तन्हाई के इस तन्हा सफ़र में, तन्हाई के हमसफर हुए हम, हाथ थाम के टटोल रहे नब्ज़, जिंदा हैं कि, है ये कोई सपना, आलम है इतनी तन्हाई का यारो, अपने ही दर पे है इंतज़ार अपना।। तन्हा तन्हा ही चलते रहे हम, लम्हा लम्हा तन्हा ही रहे हम, तन्हाई के इस तन्हा सफ़र में, तन्हाई के हमसफर हुए हम, हाथ थाम के टटोल रहे नब्ज़, जिंदा हैं कि, है ये कोई सपना, आलम है इतनी तन्हाई का यारो, अपने ही दर पे है इंतज़ार अपना।।