स्याह रातों से उबर कर जगमगाना चाहता हूँ; मैं ज़िन्दगी के सफ़हे से तल्खी मिटाना चाहता हूँ। ऊब जाता हूँ अपनी रंजिशों से अक्सर बहुत; अब दर्द का हिस्सा बहुत कुछ भूल जाना चाहता हूँ। कुछ बेरंग सी होती जा रही है ज़िन्दगी इनमें; अब ज़िन्दगी में कुछ रंग नए आज़माना चाहता हूँ। ख़ुद का दामन भी दाग़दार कर बैठा हूँ मैं; किसी और के गुनाह से ख़ुद को बचाना चाहता हूँ। दिखने लगी हैं खामियाँ ख़ुद अपने अक़्स में मुझको; भूल कर ये रंज-ओ-ग़म फिर ख़ुद को पाना चाहता हूँ। #अभिशप्त_वरदान #yqbaba #yqdidi #रंजिशें