बिखर बिखर के फिर सवंरे हंसी माज़ी से जब गुजरे लम्हों मे चंद कभी मुझे था नाज़ तेरे वफा पे सज़दे मे बैठ अब क्यूं तुम सकून मांगते हो ख़ुदा से मुझको यूं ही भूला के सारी उमर रूला के सज़दे मे बैठ अब क्यूं तुम सकून मांगते हो ख़ुदा से #Morning #para of my poetry # skun #sjda #vfa#hanseen mazhi #fraction of my poetry'sakun mangte ho khuda se'