कभी समय की ताकत देखी है तुमने जहां अर्थीया जलती थी वहां महल खड़े हो गए जहां महल खड़े थे वहां खंडहर बन गए समय को देखना हो तो कभी अपने शरीर को गौर से देखना जो बचपन की मासूमियत से प्रौढ़ावस्था तक और उस चेहरे में बदलते हाव-भाव भावनाएं समय के साथ कैसे परिवर्तित होती रहती हैं तुम्हारी समझ आंखें धुंधलाने लगती हैं और जो तुम कुछ समय पहले हवा में उड़ रहे थे शक्ति प्रदर्शन कर रहे थे अभिमान तुम्हारा चरम में था फिर मिटकर राख में खाक होकर हवा में उड़ जाते हो जो एक हंसता खेलता शरीर था रह जाता है मात्र एक राख का ढेर