#Self_Believe दहलीज क्षितिज की दूर बहुत, परवाज़ परों की घायल है। उम्मीद आंखों से सूख चुकी, दिल फिर भी हौसले का कायल है। था सोया हुआ कुछ हारा सा, हंसों में काग बेचारा सा। सागर होने का दंभ हुआ, जो दिखने में भी खारा था। राहें तो सभी दलदल हो गईं, हर आज की उम्र पल में ढ़ल गई। पर सहसा सांस मचलने लगी, ठंडी राख से इक चिंगारी उठी।