मैं मरीज़-ऐ-इश्क़ हूँ तुम्हारे , नाइलाज़ कोई । तुमसे छू कर जो हवाँ आती है, वो दवा बन जाती है।। मेरी रूह में उतर चुके हो इस क़दर, जैसे सीप में मोती। बारिश का बरसता पानी, खल-खल नदियों का बहता पानी।। अभी वक़्त का तकाज़ा है, थोड़ा तुम्हें मुझे समझना बाक़ी है। मैं तो खुली क़िताब हूँ, पढ़ लेना किसी भी पहलू में मुझे।। वो मधुर ध्वनि कानों को सुकू देती है,एक तुम ही मुझे सुकू देते हों। जाऊँ तो जाऊँ कहाँ, मेरी इबादत का इश्क़ मुक़मल यही होगा।। बिछड़ कर भी मिलते है मिलने वाले, तुम पहल दिखाओ ज़रा। क्यू चुप बैठे हो , बेवाक मन की बात समझाओ ज़रा।। - 🖋️मेरी_रूह #love