हर एक एहसास कैसे बयां हो, जिससे 'साथ' बेनाम न रह जाए, उल्फतों के मारे 'दो दिल' कहीं बेघर, बदनाम ना रह जाए, शहर भर ने शामिल नहीं किया, ना बसाने-बनाने दिए उन्हें ठिकाने, तोहमतें लाख थोपते, देते फिरते खुदाई और रुसवाई के वास्ते... दिया ना नाम, रहे बदनाम करते, बेज़ार हो... दम तोड़ देते बेनाम रिश्ते!! ***ऑनर किलींग - पारिवारिक सम्मान के लिए की गई हत्या*** ये गुजरे जमाने या किसी गांव देहात की बात नहीं। बड़े-बड़े शहरों में, पढ़ें-लिखे लोग ये मानवीय मूल्यों को शर्मशार करने वाली हरकतें करते हैं। युवाओं को नैतिकता का पाठ पढ़ाने की जरुरत जितनी है, उतनी ही ज़रूरत दकियानूसी विचारों को दरकिनार करने की भी है। अपने आसपास ऐसी किसी भी घटना के मूक दर्शक नहीं, आलोचक बने, बहिष्कार करें ऐसी सामाजिक शाखाओं का। जीने का अधिकार परमात्मा ने सबको बराबर ही दिया है। अमानवीय व्यवहार किसी भी हालात में मान्य नही होता है। 🙏 Shree