सिमट कर बाहो मे तेरी फसाने मोहब्बत के यूं ही जेब-ए-दास्तां हो गए रूहानी बज़्म मे कहीं, वादा-ए-फर्दा मे झलकती है पूरी करने की मेरी हर ख्वाहिश तेरे ज़हन मे कही, कशिश तेरी मुझे खिंचती है तेरे दरमियां उम्र-ए-राफ्ता से हर पल ही, साज़ छिड़ता है जब भी तेरी तड़प का गज़ल मेरी भी मशहूर होती है तेरी जिन्दगी की महफिल मे तभी। जेब-ए-दास्तां :- मुख्य विशेषताएं उम्र-ए-रफाता :-पिछला जन्म ❤ प्रतियोगिता- 623 ❤आज की ग़ज़ल प्रतियोगिता के लिए हमारा विषय है 👉🏻🌹"वक़्त निकलता रहा"🌹