पहला नशा, पहला खुमार सुबह की पहली किरण के साथ ही मेरी आँख खुल गयी। मैं उठते ही माँ के पास किचन में आ गयी। मुझे इतनी सुबह जगा देख माँ आश्चर्य में बोली, "क्या बात है अलीशा! आज बहुत जल्दी उठ गई।" मैंने माँ के गले मे दोनों हाथों से घेरा बनाके कहा "माँ आप भूल गयी आज मेरे कॉलेज का पहला दिन है और मैं पहले ही दिन देर से नही पहुँचना चाहती।" माँ हँसते हुए बोली, "तभी मैं सोचूँ आज सूरज उल्टी दिशा से कैसे निकल गया?" मैं चिढ़ते हुए बोली- "उफ़्फ़ माँ ये सब छोड़ो मुझे भूख लगी है जल्दी से नाश्ता दे दो।" मैंने जल्दी जल्दी नाश्ता किया और कॉलेज के लिए निकल गयी। कॉलेज का पहला दिन था तो थोड़ा डर लग रहा था साथ ही उत्सुकता भी हो रही थी कि कॉलेज कैसा होगा, लोग कैसे होंगे और भी बहुत कुछ दिमाग़ में चल रहा था। मैं इन्हीं सब ख़्यालों में खोयी थी कि कॉलेज आ गया। कॉलेज में प्रवेश करते ही सामने ही रंग बिरंगे फूल और उनसे महकती हुई ये हवाएं सब ने मेरा मन मोह लिया। मैं इन्ही खुश्बुओं में खोई आगे बढ़ रही थी कि तभी अचानक किसी से टकरा गई। सारी किताबें हाथ से छूट कर नीचे गिर गयी। मैं नीचे झुक कर किताबें उठाने लगी और गुस्से से उस शख़्स को कुछ बोलने के लिए जैसे ही नज़रें उठायी, बस उसे देखती ही रह गयी, फ़िज़ा और भी ख़ुशनुमा हो गई।