तुम्हारी तस्वीर बनाता रहता हूं इन दिनों जानता हूं तुम यही कहोगी कि तुम्हारी और कैनवास की कब से बनने लगी हां, ये सच है लेकिन बदलाव भी तो सत्य है देखो न, अब तुम भी तो साड़ी पहनने लगी हो हम सब को बदलना पड़ता है कभी चाहकर और कभी बिना चाहे हां, दो चीजें अब भी नहीं बदली हैं तुम्हारे बड़े बड़े झुमके और मेरी अंगुलियों को तुम्हारा अहसास खैर! कभी फुर्सत मिले तो देखना अपनी तस्वीरों को... ©ABRAR तुम्हारी तस्वीर बनाता रहता हूं इन दिनों.. #abrarahmad #poem #Poetry aabha #lonely