अब तजुर्बा भी कर लिया और पढ़ ली किताब भी, सब कुछ समझ गया हूँ हक़ीक़त भी ख़्वाब भी, मैंने बना के सबसे रखी काम के हैं सब, मुझको बेकार जानता है तेरा बाप भी, मैंने कहा था तुझसे ज़रा इन्तिज़ार कर, अब देख हो गया हूँ न कामयाब मैं भी, जब दूर तुम गई तो क़लम को उठा लिया, वरना अभिषेक और आशीष लाए थे प्रेम के लिए शराब भी, मैंने भी काफ़ी कुछ दिया है तुझको, जब फ़्री रहना कभी तो करना हिसाब भी, जो लोग मानते नहीं प्रेम को शायर, अब इस ग़ज़ल से मिल जायेगा उनको जवाब भी। ©Prem_pyare #TereHaathMein #hisab #तजुर्बा_ए_ज़िन्दगी