मुन्तजिर हों जब आँखें, हर घड़ी ज़ियारत को । कैसे,, दिल भुला देगा , अब तुम्हारी चाहत को ।। अपनी ही ख़ुशी में तुम, दूर कर लिये ख़ुद को । आज भी मैं रोता हूँ , बस उसी मुहब्बत को ।। सांसें ,, तेरे वादों की , ज़िक्र में हैं सरगर्दाँ । भूल बैठे हो शायद , तुम ही मेरी उल्फ़त को ।। कल ख़ोदा को मह़शर में, कैसे मुहँ दिखायें गे । बाँटने के क़ायल हैं, जो दिलों की क़ुर्बत को ।। रंज क्यूँ नजूमी से , शिकवा क्या लकीरों का । क्यूँ मैं रोऊँ क़िस्मत को, या तिरी ह़िमाक़त को ।। तेरा ,, शुक्र है यारब , तेरी मेहरबानी है । भूल जाऊँ मैं कैसे , तेरी इस इनायत को ।। "सानी" दर्द-वो-ग़म मीठे, लगते हैं मुह़ब्बत के । वक़्फ़ ज़िन्दगी करदी , इक तिरी इबादत को ।। (Md. Shaukat Ali "saani") follow me friend...