मेरी स्वरचित काव्य संग्रह में एक और काव्य, जिसका शीर्षक है,#सबको_सब_पता_है। सबको सब पता है, फिर भी अपनी आंखों पर पर्दा डाल बैठे है। घर बड़ी मुश्किल से चलता है, फिर भी डोडो की गरणी झाल बैठे है।। सबको सब पता है, फिर भी अपने घर में अनजान बन बैठे है। घर के बेटे - बेटियां चोवटे धूड़ उड़ावे, फिर भी बेजान ठन बैठे है।। सबको सब पता है, फिर भी दूसरों की खाल खींचे बैठे है। दर्द तो उन्हे भी होता है, फिर भी आंखें भींचे बैठे है।। सबको सब पता है, फिर भी अपनी मति मार बैठे है। कहते फिरते है मेरे चार बेटे है, फिर भी घर से बाहर बैठे है।। सबको सब पता है, फिर भी अपनी लाचारी छिपाए बैठे है। बहू - बेटियां रीलो बनावे, फिर भी अपनी मूंछ का चावल दिखाए बैठे है।। सबको सब पता है, फिर भी नजरंदाज किए बैठे है। घर में नशा करेंगे, फिर भी दूसरों को सलाह दिए बैठे है।। #धीर ©Narpat Ram #Past