जुबा पे है खामोशी मगर, अन्दर तूफानों का दौर बहुत है। आंसू हैं छलके मगर, दिल चोर बहुत है। रुके है हम कहीं पर मगर , चलने की दौड़ बहुत है। लुटे है आशियाने कितने मगर, फिर भी बसने की हौड़ बहुत है। ---------------- आनन्द ©आनन्द #आनन्द_गाजियाबादी #Anand_Ghaziabadi #बहुत_है