अनुभूति ~~~~~ समा गयी तुम, एक सिहरन की तरह... मेरे चेतन -अचेतन में... एक तितली के स्पर्श से.... पुष्प की संवेदनशील अनुभूति के समान, मेरे अंतरमन में हर समय आच्छादित... तुम्हारी सतरंगी मधुर अनुभूतियाँ.... श्वासों में बसी तुम्हारी सुगन्धित श्वासें लाती हैं, अनायास ही एक सिहरन, और मेरा रोम रोम अनुभव करता है... सिर्फ तुम्हे.... हर शाम तुम दे जाती हो,तीव्र हृदय संवेदनाओं से.. मन के तारों में एक संगीत.... जो समाहित होता है,मेरी नस नस में... हृदय स्पंदित होता है,तुम्हारे ही स्पंदनो से... मन संजो लेता है,फिर तुम्हारी आकृति को... और एक अनुपम अनुभूति... तुम्हारे स्नेहिल आंचल में,तुम्हारे केशों में, खो गया है मेरा अस्तित्व,तुम्हारे ही भीतर.. तुम्हारे ही अंक में,फिर मैं नहीं रहता, रह जाती हो सिर्फ तुम......!! राजीव"अरविन्द"