क्या बताएँ तुम्हें क्या हुआ है हमें ख़ुद भी नहीं जानते ख़ुदा क़सम! अजब सी बात है अनजान आहट से उलझती रही ज़ुल्फ़ें...बहकते रहे हम! सोचूँ,लिख डालूँ हाल दिल का पर लिखते हुए लफ़्ज़ पड़ जाते हैं कम! कैसे करें इस मौज़ू पर बात हम ऐसा करो तुम लिख लो कोई नज़्म कुछ भीगे कुछ महके हो अल्फ़ाज़ ग़ज़लगोई का मौज़ू रखना मोहब्बत क्या बताएँ तुम्हें क्या हुआ है हमें ख़ुद भी नहीं जानते ख़ुदा क़सम! अजब सी बात है अनजान आहट से उलझती रही ज़ुल्फ़ें...बहकते रहे हम! सोचूँ,लिख डालूँ हाल दिल का पर लिखते हुए लफ़्ज़ पड़ जाते हैं कम!