याद आती हैं मुझको, बचपन की वो घड़ियाँ, याद आती है वो बचपन की मस्ती, वो सहेलियों के संग धूल उड़ाती गलियां, कैसे भूलूँ वो घड़ियाँ ?? वो पनघट के ठहाके, वो दोस्तों का झुण्ड, वो मस्ती के इलाके, वो उड़ती सी धुंध, कैसे भूलूँ ??? वो बारिश का शोर, उसमें कश्ती बनाकर तैराते हम, वो भीगा -भीगा मौसम, मिट्टी की सौंधी सी सुगंध में खो जाते हम, कैसे भूलूँ वो घड़ियाँ ??? कैसे भूलूँ वो संग ??? चलती थी अपनी भी छुकछुक करती रेल, मिट्टी के बना घरोंदें हम भी खेला करते थे खेल, बचपन का वो सफर कैसे भूलूँ ???? याद आता है वो माँ का ममता भरा आँचल, वो पिता की प्यार भरी फटकार, वो बस्ते का बोझ, वो टीचर्स का दुलार, कैसे भूलूँ ??? अब समझ आया कि, बचपन तो एक सपना था घर बदले, दीवारें बदलीं बदल गए वो घरौंदे, अपने भी हो गए थे व्यस्त से, खुशियों की वो कतारें बदल गईं, बदल गए रास्ते, बदल गए सब खेल.. नहीं बदला तो गली का वो पीपल वाला पेड़, जिसकी ठंडी छाँव में खेला करते थे कई खेल, आज भी सब कुछ छपा है जहन में, भूलूँ तो कैसे भूलूँ !!!! वो साथी, वो ठहाके, वो बचपन की घड़ियाँ, कैसे भूलूँ ?????? #कैसे भूलूँ ???? रोहित तिवारी